Sunday 21 April 2013

चूल्हे की रोटी का स्वाद ही न्यारा सै CITY NEWS YNR



  चूल्हे की रोटी का स्वाद ही न्यारा सै 
सब्सिडी के सिलेंडर कम करने से ग्रामीणों ने निकाला रास्ता, फिर से दिखने लग गए हैं घरों में मवेशी 
विनोद धीमान
जगाधरी वर्कशॉप। सरकार द्वारा सब्सिडी वाले एलपीजी सिलेंडरों की संख्या सीमित करने से एक बार तो महिलाओं को जोर का झटका लगा था, लेकिन अब उन्होंने इसका भी तोड़ निकाल लिया है। गैस की जगह फिर से घर के आंगन में चूल्हा जल गया है। महिलाएं अब एलपीजी चूल्हे पर केवल नाममात्र का कार्य करती हैं और खाना बनाने का पूरा कार्य चूल्हे पर कर रहीं हैं। इससे पैसे की बचत तो हो ही रही है, साथ ही सिलेंडर खत्म होने के टेंशन से भी छुटकारा मिल गया है।
शहरी क्षेत्र की तर्ज पर देहात की महिलाएं घरेलू कार्य के लिए पूरी तरह से एलपीजी पर निर्भर हो चुकीं थीं। गांवों में भी चूल्हा बीते जमाने की बात बनकर रह गया था। सरकार द्वारा 21 दिन में उपभोक्ताओं को सब्सिडी पर सिलेंडर मुहैया करा दिया जाता था। अब सरकार ने अचानक प्रतिवर्ष केवल नौ सिलेंडर सब्सिडी पर देने का फैसला लिया है। खाना बनाने के लिए एलपीजी पर निर्भर रहने वाली महिलाओं ने सरकार को इसका जवाब दे दिया है। महिलाओं ने फिर से अपनी पुरानी परंपरा के मुताबिक चूल्हे पर खाना बनाना शुरू कर दिया है।
पैसे की बचत, टेंशन फ्री :
कैल गांव की शान्ती देवी ने बताया कि चूल्हे पर खाना बनाने के दो फायदे हैं। एक तो पैसे की बचत होती है, दूसरा सिलेंडर खत्म होने की परेशानी से छुटकारा मिल गया है। चूल्हे पर गैस की बजाय थोड़ा देरी से खाना जरूरत बनता है, लेकिन इसके लिए भी उन्होंने टाइम टेबल बना लिया है। जहां सुबह पांच बजे उठना पड़ता था, अब साढ़े चार बजे उठकर चूल्हा शुरू करना पड़ता है।
चूल्हे का खाना है पौष्टिक 
कासंपुर की महिला इन्दु राणा ने कहा कि बेटा चूल्हे का खाना पौष्टिक होता है। गैस पर पकने वाली रोटी से मोटापा होता है। कुकर पर बनने वाली सब्जी से ज्यादा स्वाद सब्जी चूल्हे पर डेगची में बनने वाली सब्जी होती है। बीते दिनों की याद ताजा करते हुए कहा कि जब तैरे ताऊ घर आते थे तो चूल्हे के सामने बैठकर ही रोटी खाया करते थे। स्वाद-स्वाद में दो-तीन रोटी फालतू खा जाया करते। इब तो गैस की दो रोटी भी पूरा दिन कलेजे में धरी रहवै सै।
घरों में फिर आए पशु : 
ससोली गांव निवासी सीमा देवी ने कहा कि घरों में फिर से भैंस व गाय आ गई हैं। चूल्हे के लिए उपले और उपलों के लिए भैंस व गाय का गोबर चाहिए। इससे ग्रामीणों ने पशु रखने शुरू कर दिए हैं। पशु रखने से भी दो फायदे हैं। एक तो शुद्ध दूध घर का होता है और दूसरा उपले बनाने के लिए गोबर मिल जाता है।


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