-बरसन लागी बदरिया झूम-झूम कै....
-डीएवी गल्र्स कालेज में हुआ लेक्चर डेमोंस्ट्रेशन-
-बनारस घराने के पंडित भोला नाथ मिश्रा व डीयू के सितारवादक डा. राजीव वर्मा ने प्रस्तुतियां-
यमुनानगर। बनारस घराने के वोकल आर्टिस्ट पंडित भोला नाथ मिश्र ने जब डीएवी गल्र्स कालेज के सभागार में बरसन लागी बदरिया झूम-झूम कै...कजरी प्रस्तुत की, तो पूरा सभागार तालियों से गूंज उठा। सभागार के बाहर जहां बादलों ने भी झुककर हल्की रिमझिम के जरिए इसका स्वागत किया, तो वहीं कालेज का पूरा माहौल संगीतमय हो गया। शनिवार को डीएवी गल्र्स कालेज में संगीत विभाग द्वारा लेक्चर डेमोंस्ट्रेशन का आयोजन किया गया। जिसमें बनारस घराने से आए पंडित भोला नाथ मिश्रा व दिल्ली विश्वविद्यालय से आए सितारवादक डा. राजीव वर्मा ने अपनी प्रस्तुतियां दी। कार्यक्रम की अध्यक्षता कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्या व विमैन स्टडी सेंटर की डायरेक्टर डा. विश्व मोहिनी ने की।
पंडित मिश्रा ने कार्यक्रम की शुरूआत राग गुजरी तोड़ी हे महाराज जगत के पालन हार... से की। जिसे सुनकर सभागार में बैठे सभी श्रोता मंत्रमुग्ध हो गए। इसके उपरांत उन्होंने द्रुत एक ताल गुनन की लड़ाई लडिए ... की प्रस्तुति दी। जिसने सभी को भावविभार कर दिया। जब उन्होंने भवरी ठूमरी बाबुल मोरा नैहयर छुटो जाए ... प्रस्तुत की तो पूरा वातावरण संगीतमय हो गया। करीब १५ मिनट तक सभागार करतल ध्वनि गुंजता रहा। दिल्ली विश्वविद्यालय से आए डा. राजीव वर्मा ने जब सितार पर तान छेड़ी तो संगीत की स्वर लहरियां पूरे सभागार में दौड़ पड़ी। उन्होंने अपने कार्यक्रम की शुरूआत मधुवंती में आलाप जोर झाला से की। इसके बाद उन्होंने दो गते, विलंबित और द्रुत झाला की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम के दौरान तबला व सितार की जुगलबंदी को देखकर सभी ने दांतों तले उंगलियां दबा ली। कार्यक्रम के दौरान तबले पर जयशंकर मिश्र, सारंगी पर कमाल अहमद व हारमोनियम पर जाकिर भोलपुर ने साथ दिया।
छात्राओं को संबोंधित करते हुए पंडित भोला नाथ मिश्रा ने कहा कि क्लासिकल संगीत अगरबत्ती की तरह होता है। जैसे अगरबत्ती धीरे-धीरे वातावरण को सुंधित कर देती है, वैसे ही क्लासिकल संगीत है। संगीत का लक्ष्य धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष (चारों पुरुषार्थों) की प्राप्ति है। जीवन पथ के किसी मोड़ पर रूक कर देख लीजिए वहीं पर संगीत मिलेगा। विभिन्न देशों में संगीत के प्रकार चाहे भिन्न भिन्न हो, किंतु प्रचार और गुणों का रूपांतर नहीं होता। चारित्रिक उत्थान एवं वासनाओं पर विजय प्राप्त करने का सर्वोत्म साधन भी संगीत ही है। इस ललित कला की गहराई नहीं नापी जा सकती। उन्होंने कहा कि शास्त्रीय संगीत हमारी धरोहर है। लेकिन एक संगीतकार की धरोहर शास्त्रीय संगीत है।
कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्या ने कहा कि इस ललित कला में सिद्धि प्राप्त करने के लिए कठिन तपस्या करनी पड़ती है। एक योगी के समान स्थिर ह्रदय से आपको संगीत के विशाल कक्ष में प्रविष्ट होना पड़ता है और आज जो प्रस्तुतियां दी गई हैं, वो कठिन तपस्या का ही परिणाम है। ताल, लय, शब्दों के पीछे छिपे भाव, गहराई, इन सबकी आनंदमयी तथा भावपूर्ण संयोग की प्रस्तुति का प्रस्तुतिकरण भाव विभोर करने वाला रहा। संगीत डा. विश्वमोहिनी ने कहा कि संगीत में कलाकार स्वर के माध्यम से अपने भावों को प्रस्तुत करता है। विभागाध्यक्षा डा. नीता द्विवेदी ने कहा कि कार्यक्रम का मु य उद्देश्य छात्राओं को शास्त्रीय संगीत से रू-ब-रू करवाना था। उन्होंने कहा कि संगीत की उत्पत्ति वेदों के निर्माता ब्रह्मा द्वारा हुई। उन्होंने ये कला शिव जी को दी और शिव द्वारा मां सरस्वती को प्राप्त हुई। यही वजह है कि सरस्वती को वाणी पुस्तक धारणी कहा जाता है। मंच संचालक अर्थशास्त्र विभाग की लेक्चर्रर आंचल ने किया।
Vinod Dhiman CITY NEWS YNR
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