स्लोगन लेखन, भाषण, पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन
यमुनानगर गुरु नानक गल्जऱ् कॉलेज संतपुरा में एनएसएस इकाई व लीगल लिट्रेशी सेल के संयुक्त तत्वाधान में निबंध ले ान, काव्य पाठ, स्लोगन लेखन, भाषण, पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें छात्राओं ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। एनएसएस इकाई की संचालिका डॉ. अमिता व डॉ. कुलदीप कौर ने जानकारी दी कि प्रतियोगिताओं में राजनीति और भ्रष्टाचार, कन्या भ्रूण हत्या, पर्यावरण, नारी सशाक्तिकरण, आधुनिक शिक्षा प्रणाली, मीडिया एवं समाज, शिक्षा के व्यवसायीकरण आदि विषयों को स िमलित किया गया है।
कॉलेज की प्राचार्या डॉ. विरेंद्र गांधी ने छात्राओं को प्रतियोगिताओं में बढ़-चढ़ कर भाग लेने के लिए कहा। ताकि बच्चे अपने संपूर्ण व्यक्तित्व के विकास की अवधारणा को पूरा कर सकें। उन्होंने समाज में बढ़ रही कन्या भ्रण हत्या इत्यादि कुरीतियों के प्रति हमेशा सचेत रहने का संदेश दिया। विजेताओं को प्रिंसिपल ने पुरस्कार देकर स मानित किया गया।छात्राओं ने प्रतियोगिताओं ने बढ़ चढ़ कर ााग लिया । इस मौके पर एन एस एस विभाग की डॉ. अमित एवं डॉ. कुलदीप कौर, डॉ. प्रवीण नारंग, डॉ. अनीता कालिया, डॉ. गीतू , डॉ. शक्ति, डॉ. सुखविन्द्र कौर, दिलशान कौर, वन्दना नागपाल, मोनिका महेन्द्रु व अन्य मौजूद रहे। डॉ. अमित ने जानकारी देते हुए बताया कि विजेताओं को राजकीय महाविद्यालय छछरौली में होने वाली प्रतियोगिता में भेजा जाएगा।
हर हिंदूस्तानी के दिल में बसता है भारतीय शास्त्रीय संगीत-
-संगीत है संतों की चीज-
-डीएवी गल्र्स कालेज में भारतीय शास्त्रीय संगीत पर हुई कार्यशाला-
यमुनानगर। संगीत संतों की चीज है, यही वजह है कि संगीत हर हिंदूस्तानी के दिल में बसता है। उक्त शब्द चंडीगढ़ से आए सुप्रसिद्ध कलाकार सुभाष घोष ने डीएवी गल्र्स कालेज में संगीत विभाग द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत का उच्चरत शिक्षा पर प्रभाव विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में कहे। कार्यक्रम का आयोजन महानिदेशक उच्चतर शिक्षा पंचकूला के सौजन्य से किया गया। अध्यक्षता कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्या ने की। कार्यक्रम के दौरान स्वर रागीनी वाद्ययंत्र पर जब सुभाष घोष ने राग व धूनों की तान छेड़ी तो पूरा सभागार तालियो की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। तबले पर चंडीगढ़ से आए मधुरेश भट्ट ने संगत दी। कार्यशाला के पहले सत्र में संगीत विषय की जानकारी दी गई। जिसमें संगीत का अन्य विषयों के साथ समन्वय, दिल को छू लेने वाली धूनें और ताल के साथ संयोजन के बारे में विस्तार से बताया गया। द्वितीय सत्र में संगीत के क्रियात्मक पक्ष को दिखाया गया।
-संगीत है संतों की चीज-
-डीएवी गल्र्स कालेज में भारतीय शास्त्रीय संगीत पर हुई कार्यशाला-
यमुनानगर। संगीत संतों की चीज है, यही वजह है कि संगीत हर हिंदूस्तानी के दिल में बसता है। उक्त शब्द चंडीगढ़ से आए सुप्रसिद्ध कलाकार सुभाष घोष ने डीएवी गल्र्स कालेज में संगीत विभाग द्वारा भारतीय शास्त्रीय संगीत का उच्चरत शिक्षा पर प्रभाव विषय पर आयोजित एक दिवसीय कार्यशाला में कहे। कार्यक्रम का आयोजन महानिदेशक उच्चतर शिक्षा पंचकूला के सौजन्य से किया गया। अध्यक्षता कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्या ने की। कार्यक्रम के दौरान स्वर रागीनी वाद्ययंत्र पर जब सुभाष घोष ने राग व धूनों की तान छेड़ी तो पूरा सभागार तालियो की गडग़ड़ाहट से गूंज उठा। तबले पर चंडीगढ़ से आए मधुरेश भट्ट ने संगत दी। कार्यशाला के पहले सत्र में संगीत विषय की जानकारी दी गई। जिसमें संगीत का अन्य विषयों के साथ समन्वय, दिल को छू लेने वाली धूनें और ताल के साथ संयोजन के बारे में विस्तार से बताया गया। द्वितीय सत्र में संगीत के क्रियात्मक पक्ष को दिखाया गया।
सुभाष घोष से सबसे पहले स्वर रागीनी वाद्ययंत्र पर रघुपति राघव राजा राम.... व इसके बाद ओम जय जगदीश हरे.... की धुन बजाई तो सभागार में बैठे सभी श्रोता झुमते नजर आए। सुभाष घोष ने कहा कि नई चीज खोजने के लिहाज से उन्होंने इस वाद्ययंत्र का निर्माण किया है। उन्होंने माना कि जागरूकता की कमी की वजह से शास्त्रीय संगीत युवाओं में पापुलर नहीं हो रहा है। इसके लिए काफी हद तक कलाकार भी जि मेदार है। युवाओं को शास्त्रीय संगीत से जोडऩे के लिहाज से उन्होंने कालेजिज़ व गांवों में जाकर इसका प्रचार करने की मुहिम छेड़ी है। उन्होंने कहा कि जब तक ग्रामीण क्षेत्र में संगीत के रूट्स के बारे में जानकारी नहीं दी जाएगी, तब तक भारतीय संगीत को पापुलर नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि भारतीय संगीत को बढ़ावा देने में मीडिया महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है। अकसर देखा जाता है कि मीडिया हॉलीवुड व बॉलीवुड की फिल्मों व संगीत को ज्यादा तव्वजों देता है। अगर भारतीय संगीत को भी उतना ही महत्व दिया जाए,तो ज्यादा से ज्यादा लोग इसके बारे में जान सकते हैं। उन्होंने कहा कि कला से जुड़ी हर चीज को बढ़ावा देने की जरूरत है।
कालेज प्रिंसिपल डा. सुषमा आर्या ने कहा कि देकर गई सुकून ह्रदय को नादब्रह्म की स्वर लहरियां, जलते रहे ज्ञान के दीप अमृत फल सी वाणियां, सचमुच रचनाकार और कलाकार के लिए क्रियाशील, कल्पनाशील और विवेकशील होना अतिआवश्यक है। स्वर व लय के तारत यता के साथ धुनों का अनुपम व मनोहारी स्वर संयोजन प्रस्तुत किया। निश्चय ही विद्यार्थियों के लिए मनोरंजन व ज्ञानार्जन की दृष्टि से यह कार्यक्रम लाभकारी सिद्ध हुआ।
संगीव विभाग की अध्यक्षा डा. नीता द्विवेदी ने कहा कि सरलता, सहजता, तैयारी, लय एव ताल पर अधिकार, इन सभी के पीछे कितनी साधना होगी, यह हम सभी ने अनुभव किया। उन्होंने सभी का आभार व्यक्त किया।