Sunday 18 August 2013

किताबे की जगह हाथों में रेहडे की बांगडोर CITY NEWS YNR


किताबे की जगह हाथों में रेहडे की बांगडोर

षिक्षा को लेकर सरकार यहा कडे कदम उठा रही है तो वही बच्चो को षिक्षा देने वाले अध्यापक उनके हाथों में किताबे न देकर उनसे मंगवाते है उप्पले जिन छोटे छोटे मासूम बच्चों के हाथों में किताबे होनी चाहिए उन हाथों में रेहडे की बांगडोरऔर उपर उप्पले लाद कर बच्चे स्कूल में ले जाते है और इस बात पर अध्याकपो को षर्म नही बल्कि इन बच्चों पर गर्व है क्योंकि काम तो किसी न किसी से करवाना ही होता है मामला यमुनानगर जिले के गांव कनालसी का है यहा मासूमों के हाथों से किताबो को स्कूल में रखवाकर उनसे ऐसा घिनौना काम करवाया जाता है

गांव की गलिया और इन्ही के बीचों बीच एक जानवर को हाककर उसे रेहडे से लगाया जाता है और फिर इस पर लादे जाते है गोबर के उप्पले यह मामला यमुनानगर के गांव कनालसी का है यहा के सरकारी स्कूल के बच्चों को मिड डे मिल का खाना देने से पहले उनसे मंगवाए जाते है गांव से गोबर के उप्पले मासूमों के हाथों में जानवार की रस्सी दी जाती है जबकि झोटे जैसे जानवर को काबू करना किसी आम आदमी का खेल नही होता अपनी जान को जोखिम में डाल कर मासूम इसे स्कूल से तो ले जाते है और गांव के बाहर बने गुहारों में से इन उप्पलो को बच्चों के नर्म हाथों से लदवा कर उसे स्कूल तक ले जाया जाता है अगर इस मामले मे हल्की सी भी लापरवाही बरती गई तो हो सकता है एक बडा हादसा क्योंकि यहा गांव के गलिया कही पक्की है तो वही दूसरी तरफ गांव के बाहर ऐसा रास्ता भी है यहा से पैदल निकलना भी मुष्किल है पानी के बीच से झोटे रेहडे को हाककर यह लोग स्कूल में उप्पले लेकर जाते है और तभी इन मासूमों को मिलता है वहा मिड डे मील का खाना 
 
स्वयं काम कर रहे इन बच्चों को भी काफी मजा आता है स्कूल में टीचर की डांट से तो यही अच्छा है षायद यही सोच कर यह मासूम स्कूल से गांव की गलियों की और रूख कर देते है लेकिन इन्हें तो मालूम नही है कि इनसे क्या काम करवाए जाते है लेकिन स्कूल के मुख्याअध्यपक का इस पूरे मामले में क्या कहना है आप स्वय ही सुन लिजिए दराअस्ल इन जनाब का कहना है कि काम तो किसी न किसी को करना ही है और इन बच्चों ने अगर कर भी दिया तो क्या हुआ हालाकि जनाब मान भी रहे है कि आज स्वीपर नही आया और उनका काम इन बच्चों से लिया जा रहा है क्या कानून इस बात की आज्ञा देता हैै क्या षिक्षा विभाग के यही दावे है लेकिन यहा तो मासूमों से काम ही लेना है यह तो बडे ही आराम से प्रबंधक साहिब ने कह दिया लेकिन मिड डे मील का खाना बनाने वालों के बहाने भी अजीब ही सुनने को मिले इनकी माने तो स्कूल में गैस सिलेंडर ह नही है जबकि रसोई में साफ तोर पर सिलेंडर दिख रहा है लेकिन इनका कहना है कि यह तो पुराना है और इसे भरवाए काफी समय हो गया है लेकिन एक बात तो है कि चलो कोई अध्यापक तो है जो इस काम को गल्त बता रहा है और इन्होंने भी पहले तो कह दिया लेकिन बाद में जब अपने ही अध्यापको की बात आए तो इन जनाब ने भी जाने में भलाई समझी 






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