शिकागों में औजस्वी बाणी आज भी सूनार्ह देती
युवा दिवस पर विशेष
दुनिया भर के देशों के सामने विवेकानंद ने दिया था अपने देश का परिचय
युवा पीढ़ी आज भी है विवेकानंद से ेकाफी इंस्पायर
‘हॉल में दुनिया भर के देशों से पहुंचे सभी महान साहित्यकार व अध्यात्म शास्त्री मौजूद पहुंचे थे, सभी को अपने-अपने देश के बारे स्पीच के माध्यम से दर्शन कराने थे, सो सब देशों ने एक-एक कर अपने देशों के बारे में परिचय दे दिया। कुछ देर हॉल में खामोशी छा गई, बात ही कुछ अलग थी, सर्वप्रथम ऐसा हो रहा था कि भारत देश का परिचय देने को कोई व्यक्ति स्टेज की ओर बढ़ा चला जा रहा था। खामोशी उस वक्त तालियों की गड़गड़ाहट में बदल गई, जब इस व्यक्ति ने अपनी औजस्वी वाणी में केवल यह कुछ शब्द ‘माई सिस्टर एंड माई ब्रदर’ (मेरी बहनों और मेरे भाईयों) कहे। यह शब्द दुनिया भर के देशों से हॉल में बैठे सैकड़ो अध्यात्म शास्त्रियों की रूह को कंकंपाने पर विवश कर दिया। देखते ही देखते उनके रोंगेटे खड़े होने लगे तो सभी ने खुद-ब-खुद तालियों से इस भारतीय व्यक्ति का स्वागत कर स्टेज पर लयबद्ध अंगे्रजी में बोलते हुए इस युवा को सुनते चले गए। क्यों आपके जहन में भी उस शख्स की छवि के साथ वो 11 सिंतबर 1893 का शिकागों में वर्ल्ड पारलेयामेंट आॅफ रिलीजन हॉल का वो चित्रण तरोताजा हों गया हो गया होगा। जी हां!ं आज भी स्वामी विवेकानंद की उक्त करामात से दुनिया वाकिफ है। तो भारत देश को गौरव हासिल कराने वाले यह महान व्यक्ति यूथ आईकन के रूप में जाना जाता है।
आज समाज नेटवर्क
यमुनानगर। यूं तो भारत देश के लिए कई ऐसी महान शख्सियतों का जन्म गौरवशाली सिद्ध हुआ है, उनमें ही 12 जनवरी 1863 को मकर संक्रांति के दिन जन्में संक्रांति के अग्रदूत स्वामी विवेकानंद का नाम भी सदा शुमार रहेगा। जिसने देश की संस्कृति व सभ्यता को उस समय पूरी दुनिया में पहचान दिलाई, जब भारत देश को यहां की सभ्यता व संस्कृति के चलते विदेशो में पिछड़ा समझा जाता था, तब से अब तक इस न केवल भारतवर्ष ही बल्कि दुनिया भर के देश इस महान शख्सियत के विचारों पर सलाम करने को मजबूर हो जाते है। कलकता प्रांत में मकर संक्रांति जैसे पुण्य पर्व पर विश्वनाथ दत्त के घर जन्में इस बालक को जहां पहले माता-पिता ने विले नाम दिया, तो बाद में इस बालक को नरेंद्रनादत्त के नाम से जाना गया। शूरवीर, निड़र व कुशाग्रबुद्धि आदि सब गुण बालक के चहरे के तेज को देखकर ही प्रमाणित होते दिखाई देते थे, तो इन गुणों को युवावस्था में सिद्ध भी कर दिखाया। सन् 1884 में पिता विश्वनाथ दत्त की मृत्यु के पश्चात घर की स्थिति खराब होने के कारण नौकरी ढूंढने के लिए 17 वर्ष की उम्र में नरेंद्र
Ñका सम्पर्क स्वामी रामकृष्ण परमहंस से हुआ। जहां स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने अपनी साधना के तेज और अपनी दृष्टि को नदेंद्र को देकर विवेकानंद बना दिया। जिसके बाद स्वामी रामकृष्ण परमहंस के निर्देश पर सारे भारत का भ्रमण किया। इसके बाद सन् 1893 11 सिंतबर को शिकागों के वर्ल्ड पारलेयामेंट आॅफ रिलीजन में अपने भाषण से न केवल अमेरिका बल्कि पूरे पाश्चातय देशों में भारतीय वैदिक सांस्कृतिक को दिग्विजय करा भारत लौटे। भारत लौटने के बाद स्वामी रामकृष्ण मिशन की स्थापना की और चार जुलाई सन् 1902 को समाधि ले ली। तब से अब तक स्वामी विवेकानंद के बताए मार्ग पर चलते हुए युवापीढ़ी आज भी उनसे प्रेरित हो रही है। इसी के मद्देनजर स्वामी विवेकानंद के जन्मादिवस को यूथ फेस्टिवल के रूप में मनाया जाता आ रहा है।
11 सितंबर 1893 में शिकागों में दी गई स्पीच
‘‘अमेरिकी बहनो और भाईयों आपके इस स्रेहपूर्ण और जोरदार स्वागत से मेरा ह्रदय आपार हर्ष से भर गया है। मैं आपकों दुनिया के सबसे पौराणिक भिक्षुओं की तरफ से धन्यवाद देतो हूं, मैं आपकों सभी धर्मो की जन्नी की तरफ से धन्यवाद देता हूं और मैं आपको सभी जाति-संप्रदाय के लाखों-करोड़ो हिंदुओं की तरफ से धन्यवाद देता हूं मेरा धन्यवाद उन वक्ताओं को भी जिन्होंने इस मंच से यह कहा कि दुनिया में शहनशीलता का विचार सुदूर पूरब के देशों से फैला है। मुझे गर्व है कि मै एक ऐसे धर्म से हूं जिसने दुनिया को शहनशीलता और सर्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया है। हम सिर्फ सार्वभौमिक शहनशीलता में ही विश्वास नहीं रखते बल्कि हम विश्व के सभी धर्मो को सत्य के रूप में स्वीकार करते है। मुझे गर्व है कि मै एक ऐसे देश से हूं जिसने इस धरती के सभी देशों के सताए गए लोगों को शरण दी है। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमने अपने ह्रदय में उन इस्साइलियों के शुद्धतम स्मृतियां बचा कर रखी है, जिनके मंदिरों को रोमनों ने तोड़-तोड़ कर खंडहर बना दिया और तब उन्होंने दक्षिण भारत में शरण ली। मुझे इस बात का गर्व है कि मैं एक ऐसे धर्म से हूं जिसने महान पारसी देश के अवशेषों को शरण दी और अभी भी उन्हें बढ़ावा दे रहा है। भाईयों मैं आपकों एक श्र्लोक कि कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा जिसे मैने बचपन में स्मरण किया और दोहराया है और जो रोज करोड़ो लोगों द्वारा हर दिन दोहराया जाता है जिस तरह से विभिन्न धाराओं कि उत्पत्ति विभिन्न स्त्रोतों से होती है उसी प्रकार मनुष्य अपनी इच्छा के अनुरूप अलग-अलग मार्ग चुनता है। वो देखने में भले सीधा या टेढ़-मेढे लगे पर सभी भगवान तक ही जाते है’’
विवेकानंद के नक्शे-कदम पर युवाओं के बढ़ते कदम
स्वामी विवेकानंद को आज भी यूथ आईकन के रूप में सभी युवा उनके दिखाए आदेर्शो पर चलकर अपनी और अपने देश की पहचान बनाने में लगे है। स्वामी विवेकानंद को ही अपना प्रेरणा स्त्रोत मानने वाले ट्विनसिटी के भी कुछ युवाओं ने कम उम्र में ही ऐसा मुकाम हासिल कर दिखाया है, जिससे उनकी प्रतिभा का लौहा मान इन युवाओं को शहर में यूथ आईकन के रूप जाना जाने लगा है।
अचूक निशाना लगाकर पा लिया अर्जुन अवार्ड
देश के गौरव सम्मान अर्जुन अवार्ड को पाना, जिसको हासिल करने के लिए ख्वाब में महज कल्पना-भर की थी, किंतु क्या मालूम था कि कल्पना सच भी हो सकती है। जिला यमुनानगर को अर्जुन अवार्ड दिलाने के मुकाम को हसिल कर दिखाया, जगाधरी के एक ऐसे मध्यवर्गीय परिवार में 2 जनवरी 1981 में जन्में संजीव राजपूत ने। परिवार के आर्थिक रूप से कमजोर होने पर भी संजीव ने अपनी हिम्मत न हारी और अपनी प्रारंभिक परीक्षा के दौरान पैदा हुए निशानेबाजी के शौक को ही अपना पेशा बनाने की ठान ली। पढ़ाई के साथ-साथ कई जिला व राज्य स्तर पर हुई निशानेबाजी की प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। फिर जब बारहवीं की परीक्षा में उर्तीण होने के बाद अपने खेल के जौहर के बलबुते महज 22 की ही उम्र में ही भारतीय नेवी में भर्ती हुआ। सेना में भर्ती होने के बाद मिली लगातार शूटिंग के अभ्यास ही हर सुविधा मिलने पर संजीव ने लाभ उड़ा कर खूब अभ्यास किया। सर्विस के साथ-साथ कई राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं के बाद राष्टÑीय स्तर पर प्रतियोगिता में हिस्सा लेकर यूं तो कई मेडल व अवार्ड अपनी झोली में किए। किंतु 29 अगस्त 2010 को 29 साल की उम्र में संजीव ने एक ऐसा मुकाम हासिल किया, जिसके बारे में उसने महज ख्वाब में कल्पना-भर की थी। जिले से पहली बार किसी को देश के सम्मान अर्जुन अवार्ड को देश की माननीय राष्टÑपति प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के हाथों मिला। जिसके बाद से ही जिला यमुनानगर में शूटर संजीव राजपूत यूथ आईकन के रूप में उभरा और अब इस खेल की ओर भी जिले से कई युवाओं का रूझान बढ़ता दिखाई दिया है।
अब भी सफर लंबा है...
संजीव राजपूत के पिता कृष्णलाल राजपूत ने बताया कि बेटा नेवी में भले ही चला गया हो, किंतु अपने खेल से उसका लगाव अब भी बरकरार है। उन्होंने बताया कि खेल में उसे मिले मुकाम के बाद भी उसका ये सफर थमा नहीं है, यूं तो बेटे का ख्वाब था कि अर्जुन अवार्ड लाना, जिसे उसने कर दिखाया। लेकिन हाल ही में उसने अपने ओलम्पीक में स्थान बनाकर ओलम्पीक की ओर कदम बढ़ा दिए है। उन्होंने बताय की बीती 14 जनवरी को हुए आईएसएस वर्ल्ड कप में संजीव ने 1278.2 अंक हासिल कर गोल्ड मेडल लेने के साथ ही लंदन में होने वाले ओलम्पीक के लिए क्वालीफाई कर लिया है।
सबसे कम उम्र में भीम अवार्ड से गई नवाजी
ताईक्वांडों में महज 19 वर्ष की उम्र में ही भीम अवार्ड पाने का मुकाम हासिल कर जयती पाठक ने प्रमाणित कर दिखाया कि लड़कियां भी किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं है।
प्रदेश भर में विभिन्न क्षेत्रों में सर्वश्रेष्ठ कार्यो के लिए दिया जाने वाला भीम अवार्ड जिले की छोली में आ सका है। यह मुकाम भी शहर की महज 19 वर्षीय लड़की की बदोलत हासिल हो सका। 26 जनवरी 1990 में यमुनानगर में जन्मी जयती पाठक की शुरूआत से ही पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में रूचि थी। महज 3 वर्ष की ही उम्र में ही जयती ने ताईक्वांडों खेल में खासी दिलचस्पी दिखाई और जैसे-जैसे प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। तो एक के बाद एक मेडल व अवार्ड अपनी छोली में डालते चली गई। कौच प्रभाकर शर्मा से खेल की बारिकियों से रूबरू होकर जयती पाठक ने छोटी सी ही उम्र में जिला व राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के बाद राष्टÑीय स्तर पर अपना मुकाम बनाना शुरू कर दिया था। ढेरो मेडल व अवार्ड अपनी छोली में झालने के बाद राष्टÑीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन किया। देखते ही देखते राष्टÑीय स्तर पर कई देशों में प्रतियोगिताओं में हिस्सा लेने के बाद महज 19 वर्ष की उम्र में ही भीम अवार्ड के लिए चयनित किया गया और चंड़ीगढ़ में हरियाणा के माननीय राज्यपाल और मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुडा के हाथों यह सम्मान मिला। इसके अलावा प्रदेश सरकार की ओर से जयती पाठक को हरियाणा रोडवेज के माध्यम से भीम अवार्ड जीतने पर सौगात के रूप में पूरे प्रदेश भर में निशुल्क रूप से सफर करने की सुविधा दी गई है।
मिले प्रोत्साहन तो जारी रहेगा जीत का दौर
जयती पाठक ने बताया कि यदि सरकार की ओर से थोड़ा प्रोत्साहन ओर मिले तो यह जीत का दौर जारी रहेगा। जयती के पिता अशवनी पाठक ने बताया कि बेटी के हासिल किए मुकाम से उनका सर फक्र से ऊंचा हो जाता है। उन्होंने बताया कि इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के बाद से ही जयती अमेरिकन कंपनी में सॉफटवेयर इंजीनियर के तौर पर कार्यरत है। उन्होंने बताया कि यदि सरकार की ओर से इस खेल के प्रोत्साहन के लिए सर्विस की सुविधा मिल सके तो वह और खेलों में ओर बेहतर प्रदर्शन कर सकती है।
बोड़ी बिल्डींग में अपने जिला का नाम चमकाने वालों में सर्वप्रथम अंकुर शर्मा का नाम शुमार है। जिसने कई सालों से एक नहीं बल्कि कई मेडल जीतकर अनौखा मुकाम हासिल कर दिखाया। 10 सितंबर 1983 में जन्में छोटी लाईन निवासी अंकुर शर्मा की शुरूआत से ही खेलों में और कसरत करने में खासी दिलचस्पी थी। युवा होने पर अपनी कद-काठी को लेकर सक्रियता दिखाते हुए हर दिन व्यायाम कर बनाया अपने को बलवान बनाने लगा रहा। जिला स्तर पर आयोजित प्रतियोगिताओं में दम-खम दिखाने के बाद राज्य स्तर पर अपना मुकाम बनाने के लिए बढ़ चले इस युवा ने एक के बाद एक बोडी बिल्डींग के विभिन्न टाईटलों पर अपना कब्जा किया। अंकुर शर्मा ने बताया कि उसने कई बोडी बिल्डींग के जीते टाईटलों में चार बार मीस्टर इंडिया, एक बार मीस्टर हरियाणा, व पिछले कई सालों से मिस्टर यमुनानगर के टाईटल को अपनी छोली में किया है। इसी के चलते उसे अमेरिका की ओपटीमम कंपनी द्वारा टू स्ट्रेंथ अवार्ड से हाल ही में नवाजा गया। अंकुर ने बताया कि उसकी दिली तमना है कि वह मीस्टर यूनिवर्स का टाईटल भी अपने कब्जे में कर सके। इसके लिए वह दिन-रात अभ्यास कर रहा है, उसने बताया वह जल्द ही इस टाईटल लेकर अपना और अपने देश का नाम बोडी बिल्डींग के क्षेत्र में मुकाम बनाएगा।
बस बनना है डाक्टर
डाक्टर बनने का ख्वाब है तो बनकर ही दिखाउंगी किसी कला के जरिए किसी जरूरतमंदों के काम आउंगी यहीं कुछ यहीं जज्बे के साथ जगाधरी निवासी आरोही अग्रवाल ने एक ऐसा मुकाम कर दिखया है, मन में डाक्टर बनकर किसी के काम आने का लक्ष्य लेकर आरोही कुरूक्षेत्र युनिवर्सिटी में बेचलर आॅफ फिजियोथेरेपी विषय के चारों सालों में टॉप पर आकर इस लक्ष्य की ओर बढ़ चली है। चारों साल में टॉप कर न केवल जिले में ही बल्कि पूरे प्रदेश-भर में हजारों परीक्षार्थियों को अपने मनोबल का परिचय देने वाली आरोही अग्रवाल जन्म 31 जुलाई 1989 में हुआ। जगाधरी के राजा साहेब गली निवासी आरोही जैसा नाम का अर्थ वैसा ही मुकाम हासिल करती गई। आरोही अग्रवाल की प्रारंभिक शिक्षा गर्वनमेंट सरस्वती पब्लिक स्कूल से ली। यहीं से क्लास टीचर रेखा सेठ के प्रोत्साहन से जगी अल्ख ने पढ़ाई में सबसे आगे रहने की जिद्द पैदा की और दूसरी कक्षा से आंठवी कक्षा तक यहां शिक्षा हासिल करने के दौरान हमेशा सबसे अव्वल ही रही, तो इसके उपरांत सरोजनी कालोनी स्थित एमएलएन पब्लिक स्कूल में नोवी से बाहरवीं कक्षा में भी सबसे आगे रहने का सिल्सिला जारी रखा। फिर क्या था, डाक्टर बनने का था बचपन से ख्वाब, इसी ख्वाब को पूरा करने के लिए सरोजनी कालोनी स्थित ठाकरदेवी ठाकंराम डीएवी इंस्टीट्यूट में बेचलर आॅफ फिजियोथेरेपी के तीन वर्ष जहां लगातार युनिवर्सिटी में टॉपर रही, तो अंतिम वर्ष में भी कुल 79 प्रतिशत अंक हासिल कर कुरूक्षेत्र युनिवर्सिटी में टॉप कर पूरे प्रदेश में अपनी पहचान बना पया अनौखा मुकाम। आरोही ने बताया कि उसका केवल यही मक्सद है कि वह डाक्टर बन सके बस इसी लक्ष्य को लेकर वह निरंतर प्रसासरत आगे बढ़ रही है, फिल्हाल वह इसके लिए पीजीआई में इंटरनशिप कर रही है।
वर्ष अधिक्तम प्राप्त अंक
प्रथम - 1100 885
द्वितीय- 900 671
तृतीय- 1200 937
चतुर्थ- 1375 1084
कुल- 4575 3577
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समाज सेवा से बढ़कर कुछ भी नहीं...
समाजसेवा को ही अपना कर्म-धर्म मानाने वाली जिला की एक युवा महिला ने झुग्गी झोपड़ी में रह रहे व बेसहारों को सहरा देने के लिए अपनी ओर से हर वो संभव प्रयास किया। जिसके लिए उन्हें न केवल जिला स्तर पर बल्कि राज्य और राष्टÑीय स्तर पर कई अवार्ड देकर सम्मानित किया गया। बात समाज सेवा में उत्कृष्ठ स्थान पाने वाली हुडा सेक्टर- 17 निवासी मानसी अबोहरी की, जिनको मिले इस मुकाम से आज शहर के युवा प्रेरित होने लगे है ओर इस पुनित कार्य में सहयोग को आगे आने लगे है।
बचपन से ही थी कुछ कर दिखाने की चाह
डा. मानसी अबोहरी ने बताया कि उसकों मिला यह सम्मान का पूरा श्रेय वह अपने पति व परिवार को देती है। उन्होंने बताया कि बचपन से ही बच्चों के लिए हर संभव सहायता करने की इच्छा शक्ति के कारण ही वह पूरे 9 वर्षों से बच्चों के उत्थान की अलख छेडेÞ बह्यठी है। जिसे वह निरंतर आगे बढ़ाती चली जाएगी, उन्होंने बताया कि पंजाब में शिक्षा ग्रहण करने के दौरान ही उन्होंने जरूरत मंद जो किसी कारणवंश पढ़ाई से अछूते रह जाते है, उन गरीब बच्चों को निशुल्क रूप से पढ़ाना शुरू कर दिया। उसके उपरांत 2002 में शादी कर यमुनानगर में भी इस मुहिम को जारी रखा और वह लगातार 9 वर्षो से जरूरतमंद बच्चों की सेवा का कार्य कर रही है। पिछले 6 सालों से लगातार गरीब बच्चों को शिक्षा रूपी ज्ञान के सागर के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए विभिन्न स्कूलों में कई तरह की प्रतियोगिताओं का आयोजन कर रही है।
101 निशुल्क दंत चैक्अप कैंप लगा चुकी
पेशे से दंत चिकित्सक होने के नाते गरीब बच्चों व जरूरतमंदों के लिए निशुल्क रूप से डा. मानसी अबोहरी 101 दंत चैक्अप कैंप लगा चुकी है। मानसी ने बताया कि अभी भी उसे अपने द्वारा लगाया गया प्रथम चिकित्सा कैंप जोकि 17 सितम्बर 2005 में गुरूद्वारा सिंह सभा में लगाया था याद है। तब से लेकर अब तक उनके द्वारा लगातार 101 दंत जांच शिविर लगा चुकी है। जिसमें करीब 10 हजार मरीजों के दंत जांच कर चुकी है।
इस सेवाभाव ने दिलाएं कई पुरस्कार
इनके द्वारा किए गए कार्यो के लिए केवल यमुनानगर ही नहीं विदेशों में भी चीन की संस्था ईपीईसी (ईलेक्ट्रोनिक पावर कंस्ट्रक्शन कंपनी) द्वारा वर्ष 2010 में आउट स्टेंडिंग वुमेन अचिविंग अवार्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है। 2010 में बजुर्गो के लिए बनी संस्था डे केयर क्लब संस्था भी सम्मानित किया गया। 2011 में संसदीय सचिव शारदा राठौर द्वारा उत्कृष्ट दंत चिकित्सक के लिए भी नवाजा गया। 2011 में भी बाल कल्याण के लिए राष्टीय पुरस्कार के लिए नामंकित किया गया। 2011 में ही नई दिल्ली स्पीकर हाल में आईआईएफएस के सौजन्य से तमिलनाडू व उड़ीसा के पूर्व गवर्नर द्वारा राष्टÑीय सम्मान, तो हाल ही में नए साल की सौगात के रूप में बेस्ट सिटीजन आॅफ इंडिया का आवार्ड मिला है।
विनोद धीमान
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