Friday 27 January 2012

पंजाबी संस्कृति का रस घोलती लोहड़ी CITY NEWS YNR

   

पंजाबी संस्कृति का रस घोलती लोहड़ी
ट्विनसिटी में लोहड़ी मनाने के प्रति बढ़ा लोगों को उत्साह
स्कूल-कालेजों के अलावा पंजाबी सभा व संगठनों द्वारा की जा रही विशेष तैयारी
समय के साथ पर्व मनाने के बदले पर्व मनाने के तौर-तरीके

‘13 जनवारी! सर्द हवाओं से राहत पहुंचाते अग्नि के ताप का वह सुखद आनंद में प्राचीन लोकगीतों व मूंगफलियों -रेबड़ियों के सेवन के दौरान गिद्दा-भंगडा। यह सब सुन आप पंजाब के सार्थक दर्शन व लोहडी पर्व का सार्थक सा चित्रण मन-मस्तिष्क पटल पर बनने लगता है। पंजाब से कौसो दूर होने के बावजूद भी ट्विनसिटी में पर्व को लेकर तैयारियां विशेष है, जिसके लिए कई सभाओं व संगठनों ने पंजाबी संस्कृति की झलक से शहरवासियों को रूबरू कराने के लिए पर्व पर विशेष प्रकार के आयोजनों करने की ठानी है, तो घर-परिवार में बेटी व बेटे और बहु के आने की खुशी में इस बार लोहड़ी पर्व को धूम-धाम से मनाने की तैयारियां है।’
 यमुनानगर। साल की शुरूआत के सप्ताह भर बाद ही जहां मौसम की बदली छटा और हल्की-हल्की सर्द हवाओं का दौर शुरू हो जाता है, तो साथ ही इस मौसम में पंजाबी संस्कृति का रस घोलते हुए लोहड़ी पर्व का आगाज होता है। भले ही पंजाब से ट्विनसिटी की मीलो दूरी पर हो, किंतु पर्व को लेकर ट्विनसिटी में पंजाबी  संस्कृति का पूर्ण दर्शन कराने के लिए पूरी त्यारियां की जा चुकी है, जिसमें पंजाबी सभा समेत विभिन्न संगठनों की ओर इस पर्व को धूमधाम से मनाने की ठान ली है, तो अभी लोहड़ी के कई दिनों दूर होने पर भी स्कूल-कालेजों व संगठनों की ओर से इस पर्व को लेकर पंजाबी संस्कृति की झलक से लोगों को रूबरू कराने के लिए कई तरह के आयोजन किए जा रहे है।
पर्व के साथ जुड़ी ये गाथा
लोहड़ी पर्व के साथ जुड़ी मान्यता के मुताबिक एक गांव में दुल्ला नामक व्यक्ति था, जोकि बहुत गरीब था। फिर भी उसने एक लड़की को गोद लिया और जब उसकी शादी का समय आया तो उसके पास शादी के लिए कुछ न होने पर उसने लड़की की शादी के लिए गांव का गरीब था, उसने लड़की के विवाह के लिए गांव में इधर-उधर गांव वालों की मदद ली, जिस पर गांव के लोगों की मदद के बाद सब सामान जमा करने पर उसके द्वारा अपनी बेटी का विवाह धूम-धाम से मनाया गया। यहीं गाथा इस पर्व के लिए प्रचलित है,  इसी गाथा के बाद से यह पर्व बरसों से 13 जनवरी के दिन मनाया जाता आ रहा है।लोहड़ी पर्व पर सभी परिवार के लोग व कई स्थानों पर संगठनों की ओर से इस पर्व को मनाए जाने के लिए कुछ लक्कड़ियों व गोहे आदि को जमा कर देर शाम सबके एकजुट होने के बाद सर्वप्रथम लोहड़ी को मनाने के लिए जमा की गई सामग्री पर घी को अग्नि में अर्पित करते हुए पंजाबी लोक संस्कृति से जुडे गीतों को गाकर व इसी मौसम विशेष में खाए जाने वाले खाद्य सामग्री में मुंगफलियों, रेबड़ियों व फूलियाओं आदि को अग्नि में अर्पित कर शगुन किया जाता है।
पर्व मौसम की बदली छटा का करता स्वागत
पंजाबी संस्कृति के रस घोलता यह पर्व  से जुड़ी उक्त गाथा विशेष रूप से प्रचलित है, तो वहीं इस पर्व के लिए एक और मान्यता के मुताबिक यह पर्व मौसम में आए परिवर्तन का भी स्वागत करता है, विशेषता साल के पहले सप्ताह भर के उपरांत में मौसम से ठंडक कम होने लगती है और बसंत पंचमी तक मौसम में यूं ही बदली का दौर रहता है। मौसम के यूं बदले मिजाज को भी पर्व के साथ जोड़कर देखा जाता है।
पर्व में मिठास घोलती रेबड़ीलोहड़ी पर्व में जहां लोगों को पंजाबी संस्कृति की झलक दिखाई पड़ती है, तो साथ ही पर्व में रेबड़ी की मिठास भी पर्व में और अनंद का अनुभव कर देती है, बरसो से पर्व के साथ जुड़ी मान्यता है कि पर्व को मनाते समय यानि शाम के समय लोहड़ी के शगुन के रूप में तिल की रेबड़ियों व अन्य मिष्ठानों को अर्पित किया जाता है। इसके अलावा मूंगफलियों, फूलियों आदि का पर्व के दौरान सेवन किया जाता है।दाम आसमान पर फिर भी रौनक बरकरारपर्व पर खाए जाने पर रेबड़ियों, मूंगफलियों आदि खाद्य समाग्री के भले ही दाम आसमान को छू रहे हो, फिर भी बाजार में रौनक बरकरार है। अभी तीन-चार दिन शेष होने के बावजूद भी इन खाद्य सामानों की जमकर खरीदारी की जा रही है। 
बदले मौसम तो बदले-बदले अंदाज
मौसम के बदलने के साथ मनाया जाने वाला लोहड़ी पर्व को लेकर भले ही विभिन्न सभाओं व   संगठनों की ओर से इसे धूमधाम से मनाने की तैयारियां कर ली हो, किंतु प्राचीन समय में त्यौहार से जुडे किस्सें, बोलियां व लोकगीतों भूले से भी याद नहीं आ पाते। जिसका सबसे अधिक प्रभाव युवा पीढ़ी पर हुआ है, युवाओं के प्राचीन समय के पर्व को मनाने के तौर-तरीकों से अनभिज्ञ होने के चलते नए तरह से पर्व को मनाया जाने लगा है।
लोकगीत में अटक जाती है जुबां
इसे समय की मांग कहे या फिर आज के आधुनिकता के दौर के चलन का प्रभाव कहे कि जहां पर्व के दौरान गाए जाने वाले लोकगीतों को गाते समय आज भी परिजनों की ही जुबां अटकने लगती है, तो जिससे युवा पीढ़ी भी न केवल लोकगीतों से ही बल्कि पर्व को मनाने के तौर-तरीकों से भी अनभिज्ञ रह जाती है। तो दूसरी ओर वे पर्व को नए तौर-तरीके से मनाने में लगे है।
डीजे का चला चलनयूं तो प्रचीन समय में पर्व के साथ पंजाबी संस्कृति को दर्शाते लोक गीतों के अलावा लोक नृत्यों व नृत्य के रूप में विभिन्न बोलियों पर गिद्दा व भंगड़ा किए जाने का चलन था, किंतु आज डीजे पर थिरकने का अधिक चलन चल पड़ा है।ग्रिटींग कार्ड भी दिए जाने लगेन्यू ईयर की तर्ज पर लोहड़ी पर्व पर भी युवाआें में ग्रिटींग कार्ड देने का चलन खूब बढ़ चला है, जिसका अंदाजा शहर में दर्जनों कार्ड शौप पर हो रही इन कार्डो की बिक्री को देखकर लगाया जा सकता है। दुकानदारों की माने तो लोहड़ी संबंधित कार्ड 20 से शुरू होकर 150 रूपए व इससे अधिक कीमत में यदि लेना हो तो बडेÞ आकार में 150 से 250 रूपए के बीच भी कार्ड उपलब्ध है। दुकानदारों के अनुसार भले ही लोहडी पर्व के अभी दो-तीन दिन शेष है, फिर भी हर दिन 20 से 25 कार्ड बिक रहे हैबदला रवैया तो बदली सोच
अमुमन, लोहड़ी पर्व विशेषतौर पर किसी के विवाह के बाद बहु के परिवार में पहली दफा पर्व या फिर किसी के परिवार में बेटे के जन्म होने पर त्यौहार को धूम-धाम से मनाया जाता था, किंतु अब लड़कियों के लड़कों से कदम-दर-कदम मिलाने के दौर में सभी का लड़की के प्रति रवैया बदला है। यहीं कारण है कि लड़की बचाओं व अन्य कई तरह के ऐसे अभियानों को चलाए जा रहे है। जैसे-जैसे ये रवैया बदला तो लोहड़ी पर्व पर परिवार में बेटी के जन्म पर भी वैसा ही उत्साह देखा जाता है, जैसा बेटे के जन्म पर हो और बेटी के जन्म पर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाया जाता है।
पर्व पर गए जाने वाले लोकगीत 
लोहड़ी पर्व पर गाए जाने वाले लोकगीतों में कई तरह के लोकगीत प्रचलित है, जिसमें लड़कियों व लड़कों के कई गीतों में विशेषतौर पर निम्न गीत विशेष रूप से गाए जाते है:-
Ñलोहडी पर लड़कियों के गीत
‘हुल्ले नी माये हुल्ले, दो बेरी पट्टे जुल्हे, दो जुल पाईयां खजूरियां। खजूरियां सटया मेवा, इस मुंडे दे घर मंग्वा, इस मुंडे दी वोटी निकली। हो कहंदी चोरी, कुटडी। कुट-कुट बराया थाल वोटी बावे नाना नल। ननद ते वडी परजाई। सो कुडमा दे घर आई! मैं लोहड़ी लेह आई’
लोहड़ी पर लड़कों के लिए गीत
‘सुंदर-मुंदरीए हो! तेरा कौन विचारा हो! दुल्हा वाटी वाला हो! दुल्हे दी दीह विहाई हो! शेर शक्कर पाई हो! कुड़ी दा लाल पटाखा हो! कुड़ी दा सालू पट्टा हो। साले कौन समते! चाचे चोरी कुट्टी! जमीदारां लुट्टी! जमींदारा सुदाए! बड़े बोले आए! एक बोला रह गया! सिपाही पकड़ के ले गया! सिपाही ने मेरी ईट! सानू दे-दे लोहड़ी ते तेरी जीवे जोड़ी! पैनें रो ते पांवे पीट’
पर्व के लिए विशेष लोहड़ी संगीत
‘मुक्की दा दाना, आना ले के जाना..., हुल्ले हुलारे, अस्सी गंगा चल्ले, सास-सोरा चल्ले। जेठ-जेठानी चल्ले। दयोर-दरानी चल्ले, पैरी शौकां  चल्ली। हुल्ले हुलारे। अस्सी गंगा पहुंचे सास-सोरा पहुंचे। जेठ-जेठानी पहुंचे। दयोर-दरानी पहुंचे, पैरी शौकां पहुंची, हुल्ले-हुलारे। अस्सी गंगा नाते शावा और हुल्ले, जेठ-जेठानी नाते, दयोर-दरानी नाते। पैरी शौकां नाती। हुल्ले-हुलारे। शौकां पेल्ली पौड़ी शौकां दुजी पौड़ी। शौकां तीजी पौड़ी। मिट्ठी धाखां दीत्ता, शौकां वीच रूढ गई, हुल्ले-हुलारे। सास-सोरा रौण, जेठ-जठानी रोण, दयोर-दरानी रौण, पैरा ओवी रोवे। मैं क्या तुस्सी क्यों रौंदे ओ, तुवाड़े जोग्गी मैं बथेरी, मैनू दयो बधांइयां जी। हुल्ले-हुलारे’

लोहड़ी पर्व को लेकर शहरवासियों में उत्साह का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अभी पर्व के लिए तीन दिन शेष है फिर भी पंजाबी सभा की ओर से रविवार को लोहड़ी पर्व को धूमधाम से मनाते हुए डीएवी स्कूल में एक लोहड़ी मेला आयोजित किया गया। देर शाम को शुरू हुए इस मेले में पंजाबी संस्कृति की पूर्ण झलक दिखाई पड़ी, जिसमें सैकड़ो की संख्या में लोगों ने शामिल होकर लोहड़ी पर्व को मनाया।
पंजाबी सभा के तत्वावधान में आयाजित हुए इस लोहड़ी मेले का शुभारंभ डा. ईश चढ्ढा ने किया।  पर्व में पंजाबी संस्कृति से रूबरू कराने के लिए भंगड़ा, गिद्दा व अन्य लोकगीतों को गाकर व लोहड़ी में मूंगफलियों व रेबड़ियों आदि के शगुन के उपरांत देर रात तक पर्व को धूमधाम से मनाया गया।
कलाकारों ने खूब जमाई महफील
सभा की ओर से आयोजित लोहड़ी मेला में श्रीगणेश इंटरप्राईजर्स के  सौजन्य से आयोजित रंगारंग कार्यक्रमों में हास्य कलाकार जूनियर जसपाल भटी, जूनियर गुरदासमान, गिद्दा और भांगड़ा टीम ने दर्शकों का खूब मनमौहा। वहीं इस अवसर पर जहां शहर से सैकड़ो की संख्या में लोग शमिल हुए तो पंजाबी सभा के महासचिव हरीश कोहली, प्रदेश कांग्रेस कमेटी सदस्य देवेंद्र चावला, आदि सभा के सभी सदस्य भी मौजूद थे।

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