रासलीला में दिखाया प्रभु-भक्त प्रेम
जगाधरी वर्कशाप। श्री राधा कृष्ण सखा मंडल द्वारा पुराना राधा स्वामी सत्संग भवन विष्णुनगर में करवाई जा रही रासलीला के तीसरे दिन श्री भक्तिमयी मीरा चरित्र का मंचन किया गया। जिसमें रासाचार्य व पद्मश्री स्वामी राम स्वरूप शर्मा ने परंपरागत ढंग से रासलीला का मंचन करवाया। आज के मंचन में श्री कृष्ण द्वारा गिरधर पर्वत को उंगली पर उठाना, भक्तिमयी मीरा के प्रभू के प्रति प्रेम और उसकी ननद उधा का हृदय परिर्वतन दिखाया गया। कंस के अत्याचारों के बढ़ने के साथ ही जब कंस ने गोकुल की तरफ अपना रुख किया तो श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों की रक्षा करने का प्रण लिया। श्री कृष्ण गोकुल वासियों से कहते हैं कि इंद्र देवता का धर्म हैकि वे वर्षा करें और धरा को तृप्त करें। आप इसकपूजा क्यों करते हैं। पूजा ही करनी है तो श्री गोवर्धन की करें। इससे इंद्रदेव नाराज हो जाते हैं और अपनी वर्षा का प्रहार नंद गांव पर करते हैं। वर्षा इतनी अधिक होती है कि पूरे गांव में पानी भर जाता है। इंद्र देव के प्रकोप से बचाने के लिए श्री कृष्ण गोवर्धन पर्वत को अपनी उंगली पर उठा लेते हैं और सभी गांव वाले पर्वत के नीचे आकर अपनी जान बचाते हैं और इंद्र देव का अभिमान टूट जाता है। मीरा पूर्व जन्म में कृष्ण जी की एक गोपी थी। उनका विवाह कृष्ण के एक सखा के साथ सम्पन्न हुआ। वह गोपी नंद गांव जाने लगी तो उसकी मां ने कहा कि तू कृष्ण का मुख मत देखना क्योंकि जो भी उसका मुख देखता है वह उसके पीछे पागल हो जाता है। गोपी मां की बात मान कृष्ण को अपना मुख नहीं दिखाती है। कृष्ण कहते हैं कि एक दिन ऐसा आएगा जब तू स्वयं मेरा मुख देखने आएगी। ऐसा ही हुआ जब कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत उठाया तो वह समझ गई कि वह प्रभू ही हैं और वह प्रभू से माफी मांगती है और प्रभू का आर्शिवाद लेती है। प्रभू ने आर्शिवाद दिया कि कलयुग में तू मीरा के नाम से जन्म लेगी मै तूझे गिरधर गोपाल के रूप मेें मिलूंगा। मीरा का जन्म राजस्थान के मेड़वा गांव में हुआ और उनका विवाह चित्तौड़ मेें राणा भोजराज के साथ हुआ। लेकिन मीरा तो कहती मेरो तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई। पति के स्वर्गवास के बाद गद्दी पर राणा विक्रम बैठे जिन्होंने मीरा को सताना शुरु कर दिया। उनके गोपाल की चोरी कराइ पिटारे में सांप भेजा विष का प्याला पिलाया। परंतु भगवान ने मीरा की रक्षा की। अंत में मीरा वृंदावन आई और बांके बिहारी का दर्शन किया। स्वामी राम स्वरूप ने सभी भक्तों से आग्रह किया कि मौका मिले तो वृंदावन जरूर आएं और भगवान के दर्शन जरूर करें।
जगाधरी वर्कशाप। श्री राधा कृष्ण सखा मण्डल वर्कशाप द्वारा करवाई जा रहे रासलीला में शुक्रवार को भीष्म प्रतीज्ञा व प्रभू की चार भक्तों पर कृपा का दृष्य दिखाया गया। इससे पहले राजसू यज्ञ में भगवान सभी को अलग अलग सेवा देते हैं और अपने आप सभी के जूठे पत्तल उठाने व सभी के पांच धुलवाने का काम लेते हैं। जुएं में सारा राजपाठ हार जाने के बाद व दुर्योधन द्वारा द्रोपदी को अपनी जंघा पर बैठने को कहने के बाद भीम प्रतिज्ञा करते हैं कि गदा से इन्हीं जंघाओं को तोडूंगा। उधर, द्रोपदी प्रतिज्ञा करती है कि दुशासन के रक्त से जब तक अपने केश नहीं धोती वो केश खुले ही रखेगी। भगवान श्री कृष्ण पांडवों के शांति दूत बनकर दुर्योधन को समझाने के लिए प्रस्थान करते हैं। द्रोपदी श्री कृष्ण को अपनी प्रतिज्ञा याद दिलाती है। श्री कृष्ण दुर्योधन के स्वागत सत्कार को ठुकराकर विदूरानी के घर जाते हैं। विदुरानी को श्री कृष्ण कहते हैं कि उन्हें भूख लगी है कुछ खाने को दो। विदूरानी उन्हें केला खिलाती है। विदुरानी प्रभू के प्रेम में यह भूल जाती है कि वह प्रभू को केले का छिल्का ही खिला रही है और प्रभू खाते जा रहे हैं। प्रभू कहते हैं कि वह भाव के भूखे हैं प्रेम के भूखे हैं वस्तु के नहीं। प्रभु को प्रेम से भक्त जो भी अर्पण करते हैं वह स्वीकार कर लेते हैं। उधर दुर्योधन श्री कृष्ण की बात नहीं मानता और युद्ध होना तय हो जाता है। अर्जुन और दुर्योधन दोनो ही सहायता मांगने श्री कृष्ण के पास जाते हैं। दुर्योधन प्रभु से सेना मांगता है और अर्जुन प्रभु को ही मांग लेता है। रसाचार्य स्वामी श्री राम स्वरूप शर्मा ने भक्तों से कहा कि जिसके साथ प्रभु हैं उसे किसी प्रकार की सेना या किसी हथियार की अवश्यक्ता नहीं होती। युद्ध में नित्य पांडवों की जीत को देखकर दुर्योधन घबरा जाता है। वह पितामह भीष्म के पास जाता है और उन्हें उत्तेजित कर देता है। भीष्म प्रतिज्ञा करते हैं कि वह कृष्ण से हथियार उठवा देंगे नहीं तो पांडवों को मार देंगे। यह सुनकर पांडव निश्चित मान लेते हैं कि कल पितामह हमें मार डालेंगे। श्री कृष्ण द्रोपदी को लेकर रात्री के समय उनके शिविर में पहुंच जाते हैं। द्रोपदी उन्हें प्रणाम करती र्है। पितामह द्रौपदी को दुर्योधन की पत्नी समझ अखण्ड सौभाग्य वती होने का आर्शिवाद दे देते हैं। जब पितामह को पता चलता है कि यह द्रौपदी है तो वह श्री कृष्ण के चरणों में प्रार्थना करते हैं कि मेरी लाज अब आपके हाथ में है। श्री कृष्ण पितामह की प्रतिज्ञा को पूरा कराने के लिए अपनी प्रतिज्ञा तोड़ देते हैं।रासलीला ने रच दी अनौखी गाथा
श्रीकृष्ण लीला के साथ हुआ सीता स्वंयवर का मंचन
प्राचीन समय से भगवान श्रीकृष्ण विभिन्न रुपों का मंचन करती आई रासलीला ने अनौखी गाथा रच दी। बात जगाधरी वर्कशाप में श्रीराधा-कृष्ण मंडल के तत्वावधान में पिछले सप्ताह-भर से आयोजित की जा रही रासलीला की है। जहां शनिवार को पहली बार कुछ यूं हुआ कि मंच कलाकारों द्वारा श्रीकृष्ण लीला के साथ रामायण के सीता स्वंयवर का मंचन भी किया गया। एक ही मंच पर भगवान श्रीकृष्ण की लीला व श्रीराम की महिमा का मंचन होता देखकर उपस्थित श्रद्धालु भाव-विभौर हुए। वहीं, सभी ने रासलीला के मंच पर रामायण का मंचन किए जाने की खूब प्रशंसा की।
शनिवार को मंडल के मंच कलाकारों के माध्यम से श्रीकृष्ण भगवान की लीला दिखाने उपरांत रामायण में हुए सीता स्वंयवर का भव्य मंचन किया गया। सीता स्वंयवर के लिए राजा जनक गुरु सततानंद को राम-लक्ष्मण सहित मुनि विश्वामित्र को बुलाते है। इस निमंत्रण पर श्रीराम-लक्ष्मण के नगर में आगमन पर नगर के सभी निवासी उनके दर्शनों के लिए उमड़ने लगते है। नगर में जैसे ही भगवान श्रीराम-लक्ष्मण प्रवेश करते है, वैसे ही नगरवासियों में उनके भव्य रुप को देखने के लिए होड़ मचने लगती है। मंच के माध्यम से बताया गया कि भगवान भक्तों की भावना अनुसार ही उन्हें दर्शन देते है। सीता स्वंयवर के लिए सभा में दस हजार राजा तथा रावण वाणासुर भी आते है। बारी-बारी सभी राजाओं ने धनुष उठाने का प्रयास किया, किंतु किसी से भी धनुष को उठाया न जा सका। यह देखकर जनक महाराज व्याकुल हो उठे और कहने लगे कि क्या इस पृथ्वी पर कोई भी वीर नहीं है, जो इस धनुष को तोड़ सके। यह सुनकर सभा में मौजूद लक्ष्मण क्रोधित हो उठते है और कहते है कि इस धनुष को वह सारे ब्रह्माण्ड में उठाकर कच्चे घडेÞ के समान फोड़ सकते है। उसी वक्त लक्ष्मण को समझाकर मुनि विश्वामित्र श्रीराम को धनुष तोड़ने की आज्ञा देते है। इस पर श्रीराम ने गुरु को प्रणाम कर धनुष समीप जाते है और धनुष समक्ष हाथ जोड़कर प्रार्थना करते है। इसके बाद श्रीराम धनुष को उठाकर उसके दोनों सिरों पर कमाल बांधकर देखते ही देखते धनुष तोड़ देते है। श्रीराम द्वारा धनुष तोड़ दिए जाने पर गुरु सतानंद की आज्ञा से सीता श्रीराम को जयमाला पहनाती है और राज जानकी का विवाह सम्पन्न होता है।
पांच कन्याओं का विवाह करवाया




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